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मकर सक्रांति को दान पुण्य का पर्व माना जाता है। सक्रांति के दिन सूर्य के संक्रमण का भी त्योहार माना जाता है। एक जगह से दूसरी जगह जाना और एक दूसरे से मिलना ही सक्रांति होती है। जब सूर्य धनु राशि से होकर मकर राशि में पहुँचता है तो मकर सक्रांति का पर्व मनाया जाता है।
जब सूर्य राशि परिवर्तन करता है तो उसे सक्रांति कहते है। यह परिवर्तन मास में एक बार आता है। जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में जाता है। इसी वजह से इसका इतना अधिक महत्व होता है कि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है।
उत्तरायण देवताओं का अयन है एवं यह एक पुण्य पर्व है। मकर सक्रांति के पर्व से शुभ कार्यो की शुरुआत होती है। उत्तरायण में मृत्यु होने से मोक्ष की प्राप्ति की सम्भावना होती है। पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्यवर्द्धक होने के साथ साथ में ही पापो का विनाशक होता है।
सूर्य पूर्व दिशा से उदित होने के बाद में ६ महीने तक दक्षिण दिशा की ओर से तथा ६ महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है। उत्तरायण का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओ की रात्रि होती है। ऐसे में वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। मकर सक्रांति के बाद में माघ मॉस में उत्तरायण में सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जाते है।
पुण्यकाल में दांत मांजना, कठोर बोलना, फसल तथा वृक्ष काटना, गाय भैंस का दूध निकालना कदापि नहीं करना चाहिए।
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